कुंडली में ग्रहण दोष? कैसे लगता है और कैसे इससे बचें ?

 

कुंडली में ग्रहण दोष कारण, पहचान और इसका समाधान के बारे मे जानते हैं

भारतीय वैदिक ज्योतिष में ग्रहण दोष (Grahan Dosh) एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली योग माना जाता है, जो जातक के जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। यह दोष मुख्य रूप से राहु और केतु के कारण बनता है, जब ये सूर्य या चंद्रमा के साथ युति (संयोग) में आते हैं। आमतौर पर सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण की भांति, कुंडली में भी जब राहु-केतु जैसे छाया ग्रह सूर्य या चंद्रमा को ग्रसित करते हैं, तब इसे ग्रहण दोष कहा जाता है।

 

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कुंडली में ग्रहण दोष कैसे बनता है, इसके प्रकार क्या हैं, इसके दुष्प्रभाव क्या होते हैं, इसे कैसे पहचाना जा सकता है,

हर दोष की तरह ग्रहण दोष भी पूर्णतया नकारात्मक नहीं होता। यदि कुंडली में अन्य शुभ ग्रह मजबूत हों, या गुरु (बृहस्पति) की दृष्टि हो, तो इसका प्रभाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसके अलावा कुछ विशेष योगों में ग्रहण दोष वाले जातक उच्च स्तर पर पहुंचते हैं, विशेषकर राजनीति, गूढ़ विद्या, तकनीकी क्षेत्र, लेखन या शोध में।

 

ग्रहण दोष एक गंभीर ज्योतिषीय योग है, लेकिन उचित उपाय, पूजा-पाठ और आत्मविश्वास से इसके प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है। कुंडली की गहराई से जांच, योग्य ज्योतिषी की सलाह और नियमित आत्मिक साधना इस दोष को काफी हद तक निष्प्रभावी बना सकती है।

ग्रहों के दोष हमें डराने के लिए नहीं बल्कि चेताने के लिए होते हैं, ताकि हम सजग होकर अपने कर्म और जीवन पथ को सुधार सकें।

आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी अपने इस लेख में कुंडली में ग्रहण दोष कैसे बनता हैं और इसका जातक पर क्या असर होता है, ये जानेंगे|

**ग्रहण दोष क्या है?

ग्रहण दोष एक ऐसा योग है जो तब बनता है जब:

* सूर्य और राहु या केतु की युति हो (सूर्य ग्रहण दोष)

* चंद्रमा और राहु या केतु की युति हो (चंद्र ग्रहण दोष)

राहु और केतु हमेशा वक्री (retrograde) गति में रहते हैं और छाया ग्रह होते हैं, जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता, लेकिन इनका प्रभाव अत्यंत शक्तिशाली होता है।

 

*ग्रहण दोष बनने की स्थिति*

1. सूर्य ग्रहण दोष (Surya Grahan Dosh)

जब राहु या केतु, सूर्य के साथ एक ही राशि या भाव में स्थित हो, विशेषकर सूर्य के 10 अंश के भीतर, तो सूर्य ग्रहण दोष उत्पन्न होता है।

2. चंद्र ग्रहण दोष (Chandra Grahan Dosh)

जब चंद्रमा राहु या केतु के साथ एक ही भाव में और बहुत पास हो, तो चंद्र ग्रहण दोष बनता है।

3. ग्रहण दोष में राशि और भाव का महत्व*

ग्रहण दोष यदि केंद्र (1, 4, 7, 10 भाव) या त्रिकोण (1, 5, 9 भाव) में होता है तो यह ज्यादा प्रभावी होता है। यदि सूर्य या चंद्रमा किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो या किसी उच्च स्थान पर हों, तो दोष का प्रभाव कुछ कम हो सकता है।

ग्रहण दोष का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में दिखता है, जैसे:

***स्वास्थ्य पर प्रभाव**

* बार-बार बीमार पड़ना

* मानसिक अशांति और डिप्रेशन

* हृदय रोग, त्वचा रोग, सिर दर्द

* नींद में कमी या डरावने सपने आना|

 

*. आर्थिक समस्याएं*

* धन का स्थायित्व नहीं होना

* बार-बार नौकरी में बाधा आना

* व्यवसाय में हानि या धोखा

*. पारिवारिक जीवन में समस्याएं*

* माता-पिता से तनावपूर्ण संबंध

* वैवाहिक जीवन में कलह

* संतान प्राप्ति में बाधा

 

4. मानसिक और आध्यात्मिक प्रभाव की तरफ से देखे तो आत्मविश्वास में कमी होती है वहीं निर्णय लेने की क्षमता पर भी इसका असर पड़ता है|

*कुंडली में ग्रहण दोष की पहचान कैसे करें?

ग्रहण दोष की पहचान कुंडली के निम्न पहलुओं के आधार पर की जा सकती है:

जन्मपत्री में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु/केतु की युति होना, अगर सूर्य-राहु या चंद्र-राहु एक ही राशि और भाव में हों और विशेष रूप से 10 डिग्री से कम दूरी पर हों, तो यह ग्रहण दोष का सूचक है।

चंद्र कुंडली में भी जांच जरूरी होती है| केवल लग्न कुंडली ही नहीं, चंद्र कुंडली (Moon chart) में भी युति देखना आवश्यक है। कई बार ग्रहण दोष चंद्र कुंडली में अधिक सक्रिय होता है।

 

यदि ग्रहण दोष के समय राहु, केतु, सूर्य या चंद्रमा की महादशा याअंतरदशा चल रही हो, तो दोष के प्रभाव और भी प्रबल हो जाते हैं।

 

नीच या अशुभ भावों में युति होना ,जैसे 6, 8, 12 भाव में यदि यह युति हो, तो व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करता है।

 

**ग्रहण दोष के उपाय (Upay for Grahan Dosh)

 

अगर किसी जातक की कुंडली में ग्रहण दोष हो, तो उसके निवारण के लिए वैदिक ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं:

1. *मंत्र जाप*

* सूर्य ग्रहण दोष:

“ॐ घृणि सूर्याय नमः” प्रतिदिन 108 बार

“आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ

* चंद्र ग्रहण दोष:

“ॐ सोमाय नमः” प्रतिदिन 108 बार

“चंद्र कवच” का पाठ

* राहु के लिए:

“ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः”

* केतु के लिए:

“ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः”

2. दान (दान पुण्य)

* राहु के लिए: काला तिल, काले वस्त्र, नीले फूल, उड़द की दाल का दान

* केतु के लिए: कंबल, नारियल, कुत्तों को खाना खिलाना

* सूर्य के लिए: गुड़, गेहूं, तांबे का दान

* चंद्र के लिए: दूध, चावल, सफेद वस्त्र

 

मान लीजिए किसी व्यक्ति की कुंडली में सिंह लग्न है और सूर्य लग्न में ही राहु के साथ स्थित है। चूंकि सिंह लग्न का स्वामी स्वयं सूर्य होता है, इसलिए सूर्य ग्रहण दोष अत्यधिक प्रभावी होगा। यह जातक आत्मविश्वास की कमी, पिता से तनाव, सरकारी नौकरी में बाधा, या अपमान झेल सकता है।

इसी प्रकार, यदि चंद्रमा राहु के साथ 4वें भाव में स्थित है, तो जातक मानसिक तनाव, नींद की कमी, माता से संबंधों में खटास और भावनात्मक अस्थिरता से जूझ सकता है।

इसीलिए आपको सतर्कता के साथ उपाय करने चाहिए, और समय समय पर सुझाए गए दान अवश्य करें|