Deepawali 2025: दीपावली 2025 कब है? नोट करे शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और दीपावली के अनसुने उपाय|

 

 

 

 

इस बार की दिवाली विशेष इसलिए है क्योंकि गुरु और शुक्र अपने शुभ भावों में स्थित रहेंगे, जिससे व्यापार, निवेश और नए काम की शुरुआत के लिए यह दिन अत्यंत मंगलकारी रहेगा। कर्क, सिंह, तुला, मकर और मीन राशि के जातकों को विशेष लाभ के योग बनेंगे। वहीं वृषभ और कन्या राशि के जातकों को सावधानीपूर्वक धन निवेश की सलाह दी जाती है।

 

दीपावली न केवल धन की देवी लक्ष्मी का स्वागत है, बल्कि आत्मिक शुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है। ज्योतिष कहता है — इस रात यदि मन शांत रखकर लक्ष्मी मंत्रों का जाप किया जाए, तो आने वाले वर्ष में समृद्धि और सफलता के द्वार खुल जाते हैं। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी दीपावली 2025 से संबंधित बेहद अहम जानकारी लेकर प्रस्तुत है!

 

 

अधिकांश स्रोतों के अनुसार, दीपावली 2025 (महालक्ष्मी पूजा) 21 अक्टूबर 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी।

इसके अनुसार, कार्तिक अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर की दोपहर/शाम से प्रारंभ होकर 21 अक्टूबर की शाम तक रहने की संभावना है।

दीक्षित समय (लक्ष्मी पूजन का शुभ समय) के बारे में कहा गया है कि यह शाम में 07:08 बजे से लेकर 08:18 बजे तक का मुहूर्त हो सकता है।

अधिक विस्तृत मुहूर्तों में यह भी उल्लेख मिलता है कि प्रदोष काल (शाम का शुभ समय) के आरंभ से अंत तक पूजा की जा सकती है।

 

इसलिए, यदि आप इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा करना चाहें तो शुभ समय शाम 07:08 बजे से 08:18 बजे (लगभग) बहुत फलदायी माना जाता है।

 

#दीपावली पूजा विधि (पूरी प्रक्रिया)

 

दीपावली पर पूजा करने की विधि (पूजा-अर्चना) अनेक शास्त्रों एवं प्रथाओं द्वारा निर्धारित है। नीचे एक समग्र, क्रमबद्ध विधि प्रस्तुत है — आप इसे अपने अनुसार समायोजित कर सकते हैं:

 

** पूर्व तैयारी

1. स्वच्छता एवं सफाई:

दीपावली से पहले घर के सभी हिस्सों (मकान, आंगन, दरवाजे, खिड़कियाँ) की अच्छी तरह सफाई करें।

यह माना जाता है कि स्वच्छ एवं प्रकाशमान घर में ही माँ लक्ष्मी आनंद से वास करती हैं।

सफाई के बाद घर के मुख्य द्वार व ईशान कोण पर तोरण, फूलों की माला, कलश आदि से सजावट करें।

 

 

2. पूजा स्थल की व्यवस्था:

पूजा के लिए एक छोटी चौकी या मंच तैयार करें — ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) या उत्तर दिशा श्रेष्ठ मानी जाती है।

चौकी पर लाल, पीला या गहरा लाल/गुलाबी वस्त्र बिछाएँ।

उसपर माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर देव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

शुद्धिकरण हेतु गंगाजल छिड़कें, या हल्का पंचामृत लगाएँ।

 

3. पूजा सामग्री

*दीपक (गृहस्थों हेतु घी या सूतेली घी, या शुद्ध तेल वाला)

*धूप/अगरबत्ती, घंटी

*फूल (विशेषकर लाल, कमल)

*अक्षत (चावल), रोली, हल्दी

*फल, मिठाई, कोइला (अगर आवश्यक हो)

*कलश, जल, नारियल, मोदक, द्रव्य (शक्कर, घृत आदि)

*सिक्के, आभूषण, पैसों की कुछ मुद्रा

*शुद्ध कपड़ा, काजल, चंदन, पुष्प आदि

*दीपक जलाने के लिए दीये, दीप सामग्री

 

 

** पूजा की क्रमबद्ध विधि;

1 पूजन संकल्प एवं शुद्धि पहले हाथ-पैर धोकर, आचमन करें। अपने पूजा का संकल्प लें, मन को शुद्ध करें।

 

2 गणेश पूजन:

सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। एक छोटी दीपक लगाएँ, पुष्प अर्पित करें। गणेश वंदना या “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें।

 

3 मातृ आवाहन एवं नीवरचना:

माता लक्ष्मी का आवाहन करें। “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।” (या अन्य लक्ष्मी मन्त्र) जप करें।

4 पूजा अर्पण (अर्पणा) पुष्प, अक्षत, लौंग, द्रव्य, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। देवी को वस्त्र, आभूषण आदि अर्पण करें।

 

 

 

5 दीप प्रज्वलन एकमुखी दीपक (घी/तेल) जलाएँ और उसे लक्ष्मी जी के सामने अर्पित करें।

6 कुबेर पूजन अगर संभव हो, कुबेर देव की पूजा करें क्योंकि वे धन के संरक्षक हैं।

7 आरती एवं प्रार्थना आरती (माँ लक्ष्मी एवं गणेश) करें, शंखनाद करें। पूरे परिवार के साथ आरती गाएँ।

 

8 प्रसाद ग्रहण एवं वितरण:

पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें और उसे परिवार व देवताओं में बाँटें।

9 दीप प्रज्ज्वलन घर-घर पूजा के बाद घर के मुख्य द्वार, छत, आंगन, कोने आदि में दीपक जलाएँ।

 

**विशेष सुझाव: यदि समय हो, तो “चोपड़ पूजा” (खाता-बही खोलना) भी उसी समय करें, विशेष रूप से व्यापारी समुदायों में बहुत प्रचलित है।

 

**ध्यान देने योग्य बातें / सावधानियाँ:

पूजा के समय स्थिर लग्न यानी राशि परिवर्तन न हो (लग्न परिवर्तन न हो) यह देखा जाए।

राहु काल (दुर्भाग्य काल) में पूजा या आरती न करें।

यदि संभव हो तो एक ही व्यक्ति (मुख्य) पूजा करें ताकि ऊर्जा परिष्कृत हो।

पूजा स्थल बहुत अधिक भीड़-भाड़ या शोर वाला न हो।

पूजा की सामग्री (फूल, अक्षत, मिठाई आदि) पहले से तैयार रखें ताकि बीच में व्याकुलता न हो।

दीपक, घी आदि हमेशा शुद्ध एवं उत्तम हो।

 

दीपावली (महालक्ष्मी पूजा) को हिंदू धर्म में केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से एक महान तिथि माना जाता है। यहाँ उसके कुछ महत्व दिए जा रहे हैं:

 

माना जाता है कि दिवाली की रात माँ लक्ष्मी घर-घर भ्रमण करती हैं, और जहाँ घर स्वच्छ, दीपित और श्रद्धा-भाव है, वहाँ वे वास करती हैं। इस दिन किया गया पूजा और दीपदान धन, समृद्धि, सौभाग्य व पारिवारिक शांति लाता है। दीपावली में प्रकाश (दीप) जलाने का अर्थ है, अज्ञानता पर ज्ञान की विजय, अधर्म पर धर्म की विजय। यह आत्मज्ञान, सत्‌चेतना की ओर प्रेरणा लाता है।

 

कई व्यापारी-उद्योगपतियों के लिए दीपावली के दिन नया बही-खाता (चोपड़ा) खोलना शुभ माना जाता है। इससे आर्थिक वर्ष की शुरुआत शुभ होती है।

इसी तरह, नए कार्यों, निवेशों आदि की शुरुआत इसके बाद करना शुभ माना जाता है, ज्योतिषीय मत यह कहता है कि इस दिन घर का वातावरण शुद्ध रहता है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। दीपों से हर कोने रोशन किया जाता है, जिससे “अंधेरा” यानी नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।

 

दीपावली के दिन यदि लग्न, नक्षत्र, योग आदि शुभ हों, तो किए गए कर्मों का फल अधिक मिलता है।

उदाहरण स्वरूप, लक्ष्मी पूजन के शुभ मुहूर्त में यदि आपका चंद्र या राशि स्वाभाविक रूप से धन-भाग्य ग्रह से सम्बद्ध हो, तो कृपा अधिक होती है।

इस दिन गरुड़ पर्व, लक्ष्मी-गणेश एकत्र पूजन आदि योग यदि बनें तो वह अत्यधिक शुभ फल देते हैं।

 

4. विशेष उपाय एवं चमत्कारी सुझाव:

 

दीपावली को सफल और प्रभावशाली बनाने के लिए नीचे कुछ प्रमुख उपाय और सुझाव दिए जा रहे हैं — जिनका पालन करना लाभप्रद माना जाता है:

 

1. एकाक्षी नारियल अर्पण

पूजा के समय माँ लक्ष्मी को एकाक्षी नारियल अर्पित करें। यह बहुत ही शुभ माना जाता है।

 

2. मूल मंत्र जप:

“ॐ ह्रीँ श्रीं क्रीँ श्रीं क्लीँ श्रीं महालक्ष्म्यै मम गृहे धनं पूरय पूरय, चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा।” — इस मंत्र का जप (कम-से-कम 108 बार या जितना संभव हो) करने से धन-संपत्ति वृद्धि और आर्थिक तंगी दूर होने का सामान्य विश्वास है।

 

3. चंदन, लाल फूल एवं लाल वस्त्र:

माता लक्ष्मी को लाल रंग प्रिय माना जाता है। पूजा के समय लाल फूल, चंदन तिलक, लाल वस्त्र आदि अर्पित करें।

 

4. दीपों की विशेष व्यवस्था:

रात के समय घर-घर, आँगन, मुख्य द्वार, छत आदि स्थानों पर दीपक अवश्य जलाएँ, ताकि तमसो मा ज्योतिर्गमय (अंधकार से प्रकाश की ओर) सिद्धि हो।

 

5. सकारात्मक विचार एवं श्रद्धा:

पूजा करते समय दिल में शुद्ध इरादे और सकारात्मक भाव रखें। पूजा-कर्म में कटुता, द्वेष, क्रोध न हो।

 

 

6. दान एवं सहायता:

गरीबों, असहायों को इस दिन भोजन, वस्त्र, वस्तु आदि दान करें। यह पुण्य के दीप को और अधिक प्रकाशित करता है।

विशेषकर लाल वस्त्र, मिठाई, अनाज दान करना लाभदायक माना जाता है।

 

7. रात्रि जागरण या ध्यान:

यदि संभव हो, पूजा के बाद हल्का ध्यान, भजन-कीर्तन या जप करना श्रेष्ठ रहता है। इससे आध्यात्मिक ऊर्जा बढ़ती है।

 

8. मध्यरात्रि (निशीथ) मुहूर्त में दीपदान:

कुछ विद्वान कहते हैं कि निशीथ काल (रात के मध्य समय) में एक दीपक विशेष रूप से जलाना चाहिए — यह अति शुभ फलदायी माना जाता है।

 

5. सावधानी:

पूजा के दौरान मानसिक शुद्धता, भक्ति भाव और एकाग्रता अत्यंत आवश्यक है।

राहु काल, ग्रह दोष, अस्थिर लग्न आदि से बचने का ध्यान रखें।

सामग्री की शुद्धता (फूल, घी, दी

पक आदि) अनिवार्य रखें।

पूजा के बाद प्रसाद एवं भोजन शुद्ध एवं सात्विक हो।

पूजा केवल अनुष्ठान नहीं, इसका उद्देश्य आध्यात्मिक जागृति, सकारात्मक ऊर्जा, और गृह-समाधान है!

 

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