भगवान शिव को क्यों पसंद है भांग और धतूरा? पौराणिक कथा!

 

भगवान शिव भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उन्हें “भोलेनाथ” और “महादेव” के नाम से भी जाना जाता है। शिव की पूजा में भांग और धतूरे का विशेष महत्व है। यह परंपरा धार्मिक, आध्यात्मिक, और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से गहन अर्थ रखती है।

 

भांग और धतूरा भगवान शिव की पूजा में गहरी धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं से जुड़े हैं। ये न केवल विषैले पदार्थों को स्वीकारने की उनकी शक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी सिखाते हैं कि नकारात्मकता और विष को भगवान को समर्पित कर सकारात्मकता और शुद्धता पाई जा सकती है। शिव की भक्ति में भांग और धतूरा न केवल प्रतीकात्मक बल्कि आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

 

भांग और धतूरा दोनों ही वनस्पति जगत में विषाक्त माने जाते हैं, लेकिन भगवान शिव की पूजा में इनका उपयोग पवित्र माना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि शिव स्वयं विषपान कर “नीलकंठ” कहलाए। समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए ग्रहण किया था। भांग और धतूरा, विष के प्रतीक माने जाते हैं, और इन्हें शिव को अर्पित कर भक्त यह संदेश देते हैं कि वे सभी नकारात्मकता, दुख, और विषैले विचार भगवान को अर्पित कर उन्हें शुद्ध करेंगे।

 

शिव योग और ध्यान के प्रतीक हैं। भांग और धतूरा एकाग्रता और मानसिक शांति प्रदान करने में सहायक माने जाते हैं। ध्यान के समय मन को नियंत्रित करने और चेतना के उच्च स्तर पर ले जाने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह केवल प्रतीकात्मक है और इसे केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित रखना चाहिए।

 

धतूरा और भांग, शिव की “साधु और तपस्वी” प्रकृति को भी दर्शाते हैं। शिव साधारण जीवन जीने वाले देवता हैं जो समाज के हर वर्ग को स्वीकार करते हैं।

ज्योतिष में, भगवान शिव का संबंध चंद्रमा और राहु-केतु से माना जाता है। चंद्रमा शिव की जटाओं में विराजमान है और उनके मस्तक पर अर्धचंद्र का स्थान है। चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। वहीं, राहु-केतु जैसे ग्रह मानसिक अशांति और नकारात्मकता का कारण बनते हैं। भांग और धतूरा इन ग्रहों के प्रभाव को कम करने और मन की शांति बनाए रखने के प्रतीक माने जाते हैं।

 

भांग और धतूरा का उपयोग राहु और केतु ग्रहों के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए किया जाता है। शिव की पूजा के दौरान भांग और धतूरा चढ़ाने से इन ग्रहों की शांति के साथ मानसिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान होता है।

 

धतूरा और भांग से जुड़ी एक पौराणिक कथा कहती है कि जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया, तो उनका ताप कम करने और विष के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भांग और धतूरा अर्पित किया गया। इससे उनका शरीर ठंडा हुआ और विष का प्रभाव कम हो गया।

 

ज्योतिष में, भगवान शिव का संबंध चंद्रमा और राहु-केतु से माना जाता है। चंद्रमा शिव की जटाओं में विराजमान है और उनके मस्तक पर अर्धचंद्र का स्थान है। चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। वहीं, राहु-केतु जैसे ग्रह मानसिक अशांति और नकारात्मकता का कारण बनते हैं। भांग और धतूरा इन ग्रहों के प्रभाव को कम करने और मन की शांति बनाए रखने के प्रतीक माने जाते हैं।

 

भांग और धतूरा का उपयोग राहु और केतु ग्रहों के दुष्प्रभाव को शांत करने के लिए किया जाता है। शिव की पूजा के दौरान भांग और धतूरा चढ़ाने से इन ग्रहों की शांति के साथ मानसिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान होता है।

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