Nirjala Ekadashi 2025 : निर्जला एकादशी 2025 में कब है ?
निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति की कुंडली में मौजूद दोषों का निवारण होता है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जिनकी कुंडली में चंद्रमा या बृहस्पति कमजोर स्थिति में हैं। व्रत के प्रभाव से मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी आपको निर्जला एकादशी 2025 से जुड़ी अहम जानकारी देने के लिए प्रस्तुत है| आज आप जानेंगे कि निर्जला एकादशी 2025 की सही तिथि कब है और पूजा करने की संपूर्ण जानकारी जानेंगे|
निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत कठिन होने के बावजूद, इसके फल अत्यंत महान हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इसलिए, जो भी व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करता है, उसे समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है और वह भगवान विष्णु की कृपा का पात्र बनता है। और सुख सौभाग्य धन धान्य में वृद्धि होती है|
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें जल तक का सेवन वर्जित होता है। इसलिए इसे ‘निर्जला’ (बिना जल के) एकादशी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी 2025 की तिथि और समय
* व्रत की तिथि : शुक्रवार, 6 जून 2025
* एकादशी तिथि प्रारंभ : 6 जून को प्रातः 02:15 बजे
* एकादशी तिथि समाप्त: 7 जून को प्रातः 04:47 बजे
* व्रत पारण (उपवास समाप्ति) का समय : 7 जून को दोपहर 01:53 बजे से 04:31 बजे तक रहेगी
**व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार निर्जला एकादशी को (भीमसेन एकादशी) भी कहा जाता है|
पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में से भीमसेन को भोजन के बिना रहना अत्यंत कठिन था। जब उन्होंने व्यास मुनि से पूछा कि क्या कोई ऐसा व्रत है जिसे केवल एक बार करके सभी एकादशियों का फल प्राप्त किया जा सके, तो व्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत में एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक बिना जल के उपवास करना होता है। भीमसेन ने इस कठिन व्रत को किया और उन्हें समस्त एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। इसलिए इस एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और मृत्यु के समय यमदूत नहीं आते, बल्कि भगवान विष्णु के पार्षद पुष्पक विमान से उसे वैकुंठ ले जाते हैं। यह व्रत समस्त पापों का नाश करता है और जीवन में शांति एवं समृद्धि लाता है।
** व्रत की विधि
1. पूर्व संकल्प: व्रत से एक दिन पूर्व सात्विक भोजन करें और व्रत का संकल्प लें।
2. उपवास : एकादशी के दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक बिना जल के उपवास करें।
3. पूजा : भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
4. दान : द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को जल से भरे घड़े, छाता, वस्त्र, फल आदि का दान करें।
5. पारण: द्वादशी के दिन उचित समय पर व्रत का पारण करें।