वट सावित्री व्रत 2025 और सोमवतीअमावस्या? सैकड़ों वर्षों में एक बार ये दुर्लभ संजोग?

वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या दोनों ही भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और फलदायक माने जाते हैं। जब ये दोनों संयोग एक ही दिन आते हैं, जैसा कि 2025 में हो रहा है (27 मई 2025 को), तब उस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। यह दुर्लभ संयोग न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना जाता है।

जब अमावस्या तिथि सोमवार के दिन पड़ती है, तब उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। यह दिन पितरों की शांति, ग्रह दोष निवारण और दीर्घायु के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है। विशेष रूप से वटवृक्ष के पूजन के साथ जब यह तिथि जुड़ती है, तो इसका पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी अपने इस लेख में वट सावित्री 2025 और साथ ही इस दिन पर सोमवती अमावस्या का होना क्या दर्शाता है, विस्तार पूर्वक आपको बताने जा रहे है|

*ज्योतिष की दृष्टि से क्यों है ये दिन खास!

1. चंद्र और सूर्य का संगम:

सोमवती अमावस्या पर चंद्रमा और सूर्य दोनों एक ही राशि में होते हैं, जिससे कुंडली में कई बार ‘योग दोष’ उत्पन्न होते हैं। इस दिन विशेष पूजन से इन दोषों का निवारण संभव होता है।

2. सूर्य-चंद्र प्रभाव:

सोमवार चंद्रमा का दिन है और अमावस्या को चंद्रमा अस्त होता है। ऐसे में मानसिक शांति, आत्मबल, और पितृ दोष से मुक्ति के लिए यह दिन विशेष रूप से उत्तम होता है।

 

3. पितृ शांति के लिए श्रेष्ठ:

इस दिन वटवृक्ष की पूजा करने और पितरों के लिए तर्पण देने से पितृ दोष, कालसर्प योग, और चंद्र दोष जैसे ग्रह दोषों में शांति आती है।

 

4. *विवाहित स्त्रियों के लिए वरदान:

वट सावित्री के व्रत के साथ सोमवती अमावस्या का योग होने से यह व्रत अत्यधिक फलदायी होता है। यह संयोग पति की लंबी आयु, वैवाहिक जीवन की रक्षा, और संतान सुख के लिए विशेष माना गया है।

 

2025 में वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या का योग अत्यंत दुर्लभ और शुभ है। इस दिन वटवृक्ष की पूजा, व्रत पालन और पितृ तर्पण से ना केवल सांसारिक सुख-संपत्ति की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक शांति और ग्रह दोषों से मुक्ति भी संभव होती है। ज्योतिष के अनुसार यह दिन सैकड़ों वर्षों में एक बार आने वाला विशेष संयोग लेकर आया है।

भारतीय संस्कृति में व्रत-त्योहारों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है *वट सावित्री व्रत , जो विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है और इस दिन वट वृक्ष (बड़ का पेड़) की पूजा की जाती है। वर्ष 2025 में यह व्रत 27 मई को मनाया जाएगा। इस बार यह व्रत ज्योतिषीय दृष्टिकोण से कुछ विशेष संयोगों और ग्रह-नक्षत्रों के कारण अत्यंत शुभ और प्रभावशाली माना जा रहा है।

यह व्रत स्त्रियों को मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास देता है, जिन महिलाओं की कुंडली में मंगल दोष, पति से दूराव , या ग्रह दोष होते हैं, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी माना गया है, यह व्रत पति की दीर्घायु के साथ-साथ दांपत्य जीवन की मधुरता बढ़ाता है।

2025 में पड़ रहा वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्रह-नक्षत्रों की विशेष स्थिति इसे और भी शक्तिशाली बना रही है। यह व्रत स्त्रियों को नारी शक्ति के रूप में आत्मबल, भक्ति, समर्पण और प्रेम का प्रतीक बनाता है। इस बार जो शुभ योग बन रहे हैं, वे दर्शाते हैं कि जो स्त्रियाँ पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक यह व्रत करेंगी, उन्हें जीवन में अवश्य शुभ फल प्राप्त होंगे।

वट सावित्री व्रत केवल एक पारंपरिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, त्याग, प्रेम और आत्मविश्वास का प्रतीक है। 2025 का यह व्रत ज्योतिषीय रूप से इसलिए खास है क्योंकि यह जीवन में सकारात्मक परिवर्तन, वैवाहिक सुख और आत्मिक शांति देने की क्षमता रखता है। जो स्त्रियाँ इस व्रत को संकल्पपूर्वक करेंगी, उनके जीवन में अवश्य मंगलमय परिवर्तन होंगे।

**वट सावित्री व्रत का पौराणिक महत्व**

इस व्रत की कथा महाभारत के वन पर्व से जुड़ी हुई है। सावित्री, जो एक राजकुमारी थीं, ने सत्यवान नामक वनवासी से विवाह किया था। जब यमराज सत्यवान की आत्मा को ले जा रहे थे, तो सावित्री ने दृढ़ निश्चय के साथ उनका पीछा किया और अंततः अपनी बुद्धिमत्ता एवं व्रत की शक्ति से यमराज को पराजित कर अपने पति का जीवन वापस प्राप्त किया। तभी से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

**2025 में वट सावित्री व्रत की तिथि और मुहूर्त**

* **व्रत तिथि:** 27 मई 2025, मंगलवार

* **अमावस्या तिथि प्रारंभ:** 26 मई को रात्रि 10:15 बजे

* **अमावस्या तिथि समाप्त:** 27 मई को रात्रि 8:30 बजे

* **पूजा का श्रेष्ठ समय:** प्रातः 06:00 से 10:00 बजे तक

**ज्योतिषीय दृष्टिकोण से क्यों विशेष है 2025 का वट सावित्री व्रत?**

**शुभ योगों का निर्माण**

2025 में वट सावित्री व्रत पर तीन प्रमुख शुभ योग बन रहे हैं:

* **सिद्धि योग:** इस योग में किए गए व्रत और अनुष्ठान शीघ्र फलदायी होते हैं।

* **अमृत योग:** यह योग आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

* **वज्र योग:** यह योग स्त्री शक्ति के जागरण का प्रतीक है।

इन तीनों योगों का एक साथ आना बहुत दुर्लभ माना जाता है और यह व्रत को अत्यंत प्रभावशाली बनाता है।

**ग्रहों की स्थिति**

* **शुक्र का वृषभ राशि में गोचर:

विवाह और सौंदर्य का कारक ग्रह शुक्र वृषभ में उच्च स्थिति में रहेगा, जो वैवाहिक जीवन में मधुरता लाने वाला है।

* **चंद्रमा का वृष राशि में होना: वृषभ राशि में चंद्रमा का होना मनोबल और शांति बढ़ाता है। यह स्थिति व्रती स्त्रियों को मानसिक बल और स्थिरता प्रदान करेगी।

* **शनि और गुरु की दृष्टि: गुरु (बृहस्पति) की दृष्टि कन्या राशि पर होगी, जो कि संतान सुख और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ मानी जाती है। वहीं शनि की दृष्टि कर्म पर केंद्रित रहेगी, जिससे पूजा-पाठ के कार्य अधिक सफल होंगे।

**व्रत की विधि और पूजन प्रक्रिया**

*सामग्री:

हल्दी, कुंकुम, रोली, अक्षत, वस्त्र, फल, मिठाई, धूप, दीप, वटवृक्ष की जड़ की मिट्टी, कलावा, लाल धागा, बांस की टोकरी, मूर्ति या चित्र (सावित्री-सत्यवान), पंखा, पान, सुपारी।

**व्रत विधि:**

1. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।

2. वट वृक्ष की पूजा करें। जड़ में जल चढ़ाएं।

3. धूप, दीप, फल, फूल अर्पित करें।

4. वट वृक्ष के चारों ओर 7 या 11 बार कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करें।

5. सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें।

6. ब्राह्मण या किसी स्त्री को सुहाग सामग्री दान दें।

7. सायंकाल व्रत खोलें।

 

**ज्योतिष के अनुसार सभी राशियों के उपाय जान लेते है**

**मेष: वटवृक्ष की छाया में बैठकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें, जीवनसाथी से प्रेम बढ़ेगा।

**वृषभ: वटवृक्ष की एक जड़ को लाल कपड़े में बांधकर घर लाएं, सुख-शांति बनी रहेगी।

**मिथुन: वटवृक्ष की पत्तियों पर चंदन लगाकर अर्पण करें, वाणी में मधुरता आएगी।

**कर्क: सफेद वस्त्र पहनकर पूजा करें, मानसिक शांति मिलेगी।

**सिंह: व्रत के दिन गेहूं का दान करें, यश और सम्मान प्राप्त होगा।

**कन्या: पीले फल का भोग लगाएं, संतान संबंधी कष्ट दूर होंगे।

**तुला: सुहागिनों को काजल और चूड़ियां दें, वैवाहिक जीवन सुखद होगा।

**वृश्चिक: वटवृक्ष की छाया में दिया जलाएं, रोग-शोक मिटेंगे।

**धनु: तुलसी दल से पूजा करें, भाग्य प्रबल होगा।

**मकर: सरसों के तेल का दीपक जलाएं, पितृदोष शांत होंगे।

**कुंभ: चांदी का सिक्का दान करें, आर्थिक लाभ होगा।

**मीन: जल में दूध मिलाकर वटवृक्ष को अर्पित करें, मनोकामना पूर्ण होगी।

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