Govardhan Pooja 2025: गोवर्धन पूजा 2025 में कब है? जानिए गोवर्धन पूजा 2025 की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और प्राचीन उपाय!
**गौवर्धन पूजा 2025: तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, उपाय, पौराणिक कथा और ज्योतिषीय महत्व**
भारत में कार्तिक मास का विशेष धार्मिक महत्व है। दीपावली के अगले दिन गौवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है, जिसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गौवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा करने की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिन भक्तों के लिए प्रेम, श्रद्धा और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भी प्रतीक है! आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी अपने इस लेख में गोवर्धन पूजा की सही तिथि पूजा विधि पौराणिक कथा और उपाय लेकर प्रस्तुत है!
**गौवर्धन पूजा 2025 तिथि व मुहूर्त**
**तिथि:** सोमवार, 22अक्टूबर 2025
**शुभ गोवर्धन पूजा मुहूर्त.** 22 अक्टूबर प्रातः 6:26 am से 8:42 तक और दोपहर 3:29 से 5:44 तक रहेगा!
**पर्व मान्यता: दीपावली के अगले दिन, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है!
**गौवर्धन पूजा की विधि (Pooja Vidhi)**
1. **स्नान एवं संकल्प:** प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत व पूजा का संकल्प लें!
2. **गौवर्धन बनाना:**
घर के आंगन में गोबर या मिट्टी से गौवर्धन पर्वत का प्रतीक रूप बनाएं। इसमें छोटे-छोटे पशु, पक्षी, वृक्ष आदि बनाकर पर्वत के चारों ओर सजाएं!
3. **भगवान श्रीकृष्ण की स्थापना:**
पर्वत के पास श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र रखें!
4. **दीपक प्रज्वलित करें** और गौवर्धन की परिक्रमा करें!
5. **अन्नकूट भोग:**
इस दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है ,जैसे खीर, पूड़ी, सब्जियां, मिष्ठान्न, सूखे मेवे आदि! इसे छप्पन भोग भी कहा जाता है।
6. **गोवर्धन स्तुति:**
“गोवर्धन धराधरं वंदे” आदि स्तोत्रों का पाठ करें!
7. **गोवर्धन परिक्रमा:**
घर में बनाए गए गौवर्धन पर्वत की सात परिक्रमा करें!
8. **दान-पुण्य:**
इस दिन गौ, ब्राह्मण, गरीबों को दान देना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है!
**गौवर्धन पूजा की पौराणिक कथा**
पुराणों के अनुसार, ब्रज में इंद्र पूजा की परंपरा थी। लेकिन श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को समझाया कि हमें इंद्र की नहीं, प्रकृति और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो हमें प्रत्यक्ष रूप से जीवन देने वाले तत्व प्रदान करता है – जल, चारा, फल, फूल, आदि!
यह बात सुनकर इंद्र देव को क्रोध आया और उन्होंने गोकुल पर मूसलधार वर्षा कर दी। श्रीकृष्ण ने तब अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर समस्त गोकुलवासियों को उसकी छाया में सुरक्षित कर दिया। सात दिनों तक बारिश होती रही लेकिन किसी को हानि नहीं हुई!
इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई!
**ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्व**
* *गौवर्धन पूजा चंद्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को होती है, जो नवचक्र का आरंभ मानी जाती है। यह नया चंद्र पक्ष सकारात्मक ऊर्जा के संचार का प्रतीक है!
यह पर्व गो, गोकुल, गौरी और गोविंद ,इन चार तत्वों का संतुलन दर्शाता है, जो जीवन में स्थिरता लाते हैं,
वृषभ और तुला राशि के जातकों के लिए यह दिन विशेष फलदायी होता है!
**राहु-केतु दोष*, पितृ दोष*और *शनि के प्रभाव* से मुक्ति पाने हेतु इस दिन गो सेवा और अन्न दान अत्यंत फलदायी माना गया है!
**गौवर्धन पूजा के उपाय (Upay)**
1. **गोमाता को हरा चारा या गुड़ खिलाएं:**
इससे पाप कर्मों का नाश होता है और सुख-समृद्धि बढ़ती है।
2. **छप्पन भोग चढ़ाकर प्रसाद वितरण करें:**
इससे दरिद्रता दूर होती है और घर में लक्ष्मी का वास होता है।
3. **गोवर्धन स्तुति या श्रीकृष्णाष्टक का पाठ करें:**
मानसिक शांति, रोग नाश और संतान सुख की प्राप्ति होती है!
4. **इस दिन तुलसी के पौधे में दीपक जलाएं:**
यह वैवाहिक जीवन को सुखी बनाता है!
5. **काले कुत्ते या गाय को रोटी खिलाएं:**
शनि और राहु की अशुभता से राहत मिलती है!
**गौवर्धन पूजा और प्रकृति पूजा**
यह पर्व हमें प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन का संदेश देता है!गौवर्धन पर्वत केवल एक चट्टान नहीं, बल्कि संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है! यह पर्व पशु, पेड़-पौधों और धरती मां के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है! प्रकृति, जल, पशु और धरती की रक्षा करना हर मानव का धर्म है! गौ, अन्न, जल इन सभी के बिना जीवन अधूरा है, इनका सम्मान करें! जैसे श्रीकृष्ण ने एक छोटी अंगुली से गोवर्धन उठाया, वैसे ही आत्मबल से बड़े संकटों को पार किया जा सकता है सभी गोकुलवासी एकत्र होकर गौवर्धन की शरण में गए, यह एकता का प्रतीक है!
**गौवर्धन पूजा 2025 न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि जीवन के हर पहलू को संतुलन में लाने का अवसर भी है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से हमें यह सीख मिलती है कि प्रकृति का आदर ही ईश्वर की सच्ची पूजा है!
इस पर्व पर हम सभी को अपने भीतर श्रद्धा, सेवा और कृतज्ञता के भाव को जाग्रत करना चाहिए और मिलकर प्रकृति के रक्षक बनें!