आदित्य हृदय स्त्रोत अगस्त्य ऋषि की रचना है और भगवान सूर्य की समर्पित ये व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता देता है शक्ति का संचार और अच्छी बुद्धि देता है| आत्मविश्वास की वृद्धि करता है|
भगवान श्री राम युद्ध भूमि में थक कर खड़े थे तो ऋषि अगस्त्य ने उनसे आदित्य हृदय स्त्रोत का जप करने के लिए कहा|
इस स्त्रोत का पाठ सुबह सर्वोदय के समय करने से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है|
|| अथ आदित्य हृदय स्त्रोत हिन्दी||
उधर थक कर चिंता करते हुए श्री राम रणभूमि में खड़े थे उतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने आ गया| यह देख कर अगस्य मुनि श्री राम जी के पास गए और इस प्रकार बोले|
सभी के हृदय में रमन करने वाले बसने वाले हे महाबाहो राम यह गोपनीय स्त्रोत सुनो| इस स्त्रोत के जप से तुम अवश्य ही शत्रुयों पर विजय पाओगे|| ये आदित्य हृदय स्त्रोत परम पवित्र और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला है| इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है| यह नित्य अक्षय तथा परम कल्याण कारी स्त्रोत है||
यह सभी पापो का नाश करने वाला ये स्त्रोत चिंता और शोक को मिटाने वाला ओर आयु को बढ़ाने वाला है|| जो अनंत किरणों से शुभायमान रश्मि मान , नित्य उदय होने वाला समुद्यत, देवताओ ओर असुरों दोनों के द्वारा नमस्कृत है, तुम विश्व में अपनी प्रभा फैलाने वाले संसार के स्वामी( भुवनेश्वर) भगवान भास्कर का पूजन करो| सभी देवता इनके रूप है, यह देवता( सूर्य) अपने तेज और किरणों से जगत को स्फूर्ति प्रदान करते है| यही अपनी किरणों ( रश्मियों) से देवता और असुर गण आदि सभी लोको का पालन करते है| यही ब्रह्मा, शिव, स्कंद, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, समय, यम, चंद्रमा, वरुण आदि को प्रकट करने वाले है|| यह पितृ, वसु, साध्य, अश्विनी कुमार ,दृढ़, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, और ऋतुओं को जन्म देने वाले प्रभा के पुंज है| इनके नाम आदित्य,सविता,( जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य( सर्वव्यापक), खग, कुशा, गभस्तिमान( प्रकाशमान), स्वर्ण सद्रश्य, भानुप्रकाशक, हिरणीयता, दिवाकर और हरिदश्व, सहस्त्रार्चित,सप्तसप्ति, ( सात घोड़ों वाले) (मरीचिमान)किरणों से सुशोभित, तिमरोमंथन, अंधकार का नाश करने वाले, शंभू, त्वष्टा, मार्तंडक, अंशुमान, हरिनयगर्भ, शिशिर ( स्वभाव से सुख प्रदान करने वाले) तपन (गर्मी उत्पन्न करने वाले) भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र्र,शंख, शिशिर नाशन( शीत का नाश करने वाले) और व्योमनाथ, तंभेदी, ऋग्यजु, और सामवेद के पारगामी, धन वृष्टि , अपाम मित्र ( जल उत्पन करने वाले) विंध्य विति प्लमगम (आकाश में तीव्र गति से चलने वाले) आत्पी , मंडली , मृत्यु, पिंगल ( जिनका भूरा रंग है) सर्वतापन ( सभी को तप देने वाले) कवि, विश्व, महातेजस्वी , रक्त, सर्वभावोदव ( सबकी उत्पति के कारक है)||
नक्षत्र ग्रह और तारो के अधिपति विश्वभावन, तेजस्वियो में तेजस्वी और द्वादशतमयो को नमस्कार है|| पूर्वुगिरी उदयाचल और पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है|| ज्योतिर्गणो (तारो और ग्रहों) के स्वामी और दिन के अधिपति आपको नमस्कार है||
जो जय के रूप है विजय के स्वरूप है, हरे रंग के घोड़ों से युक्त रथ वाले भगवान सूर्य को नमस्कार है|| उग्र वीर तथा सारंग सूर्य देव को नमस्कार है|| कमल को विकसित करने वाले प्रचंड तेज वाले मार्तंड को नमस्कार है||
आप ब्रह्मा शिव विष्णु के भी स्वामी है, सुर आपकी संज्ञा है, यह सूर्य मंडल आपका ही तेज है|| आप प्रकाश से परिपूर्ण है| सबको स्वाहा करने वाली अग्नि आपका स्वरूप है|| हे महाबाहो आपको नमस्कार है||अज्ञान अंधकार के नाशक शीत के निवारक तथा शत्रुओं के नाशक आपका रूप अपर्यमीय है|| कृतघ्नो का नाश करने वाले देव और सभी ज्योतियो के अधिपति आपको नमस्कार है||
आपकी प्रभा तप्त स्वर्ण के समान है||आप ही हरी अज्ञान को हरने वाले विश्वकर्मां संसार की रचना करने वाले, तम के नाशक प्रकाश स्वरूप और जगत के साक्षी आपको नमस्कार है||
हे रघुनंदन भगवान सूर्य ही सभी भूतो का संघर रचना और पालन करते है||यही देव अपनी किरणों से तप और वर्षा करते है||
यही देव सब भूतो में अंतरस्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते है||यही अग्निहोत्री कहलाते है और अग्निहोत्री पुरषों को मिलने वाले फल है||
ये ही वेद, यज्ञ, और यज्ञ से मिलने वाले फल है, यह देव संपूर्ण लोको की क्रियाओं का फल देने वाले है||
राघव विपत्ति में, कष्ट में, कठिन मार्ग में ओर किसी भय के समय जो भी सूर्य देव का कीर्तन करता है, उसे दुख नहीं सहना पड़ता|| तुम एकाग्रचित होकर जगतपति देवाधिदेव का पूजन करो ( आदित्य हृदय स्त्रोत) का तीन बार जप करने से युद्ध में विजय अवश्य प्राप्त करोगे||
हे महाबाहो इसी क्षण तुम रावण का वध कर सकोगे, इस प्रकार मुनि अगस्त्य जिस प्रकार आए थे उसी प्रकार लोट गए||
इस उपदेश को सुनकर भगवान राम जी का शोक दूर हुआ||
परम हर्षित और शुद्चित होकर उन्होंने भगवान सूर्य की ओर देखते हुए तीन बार आदित्य हृदय स्त्रोत का जप किया||
तत्पश्चात राम जी ने धनुष उठा कर रावण की ओर देखा और उत्साह से भरकर रावण के वध का निश्चय किया|
तब देवताओं के मध्य खड़े सूर्य देव ने प्रसन्न होकर श्री राम जी की ओर देखकर निशाचराज के विनाश का समय निकट जानकर प्रसन्नतापूर्वक कहा” अब जल्दी करो”||